Solar Panel कैसे काम करता है? जानें

Published By SOLAR DUKAN

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वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग करने के लिए आधुनिक तकनीक से बने उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है। सूर्य प्राकृतिक ऊर्जा का सबसे बड़ा भंडार है। इस से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं। सौर ऊर्जा प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है। एवं इसका प्रयोग करने से नागरिकों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। साथ ही यह पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने के लिए आवश्यक है। ऐसे ही सोलर पैनल, सौर ऊर्जा को प्रयोग करने का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है।

इस आर्टिकल के द्वारा हम आपको Solar Panel कैसे काम करता है? (Working of Solar Panel) इसकी जानकारी प्रदान करेंगे। जिस से आप सोलर पैनल की ऊर्जा दक्षता एवं उस से संबंधित सभी जानकारियों को प्राप्त कर सकते हैं। सोलर पैनल की कार्यप्रणाली समझने से पूर्व हम आपको सोलर पैनल के बारे में सामान्य जानकारी भी प्रदान करेंगे।

Solar Panel कैसे काम करता है? जानें
सोलर पैनल कैसे काम करता है?

सोलर पैनल क्या है?

सोलर पैनल एक ऐसा उपकरण है जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने वाला एक कन्वर्टर है। सोलर पैनल में मुख्य रूप से सोलर सेल होते हैं। जो एक ऊर्जा को दूसरी ऊर्जा में बदलने का कार्य करते हैं, इन्हें फोटोवोल्टिक सेल (PV सेल) के नाम से भी जाना जाता है। सोलर पैनल की मुख्य कार्यविधि PV सेल के द्वारा ही की जाती है। फ़ोटोवोल्टिक का अर्थ होता है, जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करे।

सोलर पैनल के इतिहास की अगर बात की जाए तो सन 1839 में फ्रेंच वैज्ञानिक एडमंड बेकरेल ने फोटोवोल्टिक प्रभाव की खोज की थी, उनके द्वारा यह खोज धातु इलेक्ट्रोड के एक सेल के माध्यम से यह खोज की थी। इसके बाद सन 1873 में विलोबी स्मिथ ने सेलेनियम में यह खोजा कि यह फोटो-कन्डक्टर का कार्य करता है। 1883 में चार्ल्स फ्रिट्स द्वारा सेलेनियम से पहली बार सोलर सेल का निर्माण किया गया था। वर्तमान में प्रयोग होने वाले सोलर सेल सिलिकॉन के बने होते हैं, जिनका निर्माण बेल लैब्स में 1954 में डेरिल चैपिन, केल्विन फुलर और गेराल्ड पियर्सन के द्वारा किया गया था।

सोलर सेल

सोलर पैनल की मुख्य कार्यविधि सोलर सेल के द्वारा की जाती है। जिनका निर्माण सिलिकॉन के द्वारा किया जाता है। सिलिकॉन एक अर्द्धचालक (Semiconductor) होता है, अर्द्धचालकों की अंतिम कक्षा में 4 इलेक्ट्रान रहते हैं। सिलिकॉन के साथ जब ऐसे तत्व को मिलाया जाता है, जिसकी अंतिम कक्षा में 5 या 3 इलेक्ट्रान होते है तो तब N-type (ऋणात्मक प्रकार- 3 इलेक्ट्रान वाले) एवं P-type (धनात्मक प्रकार- 5 इलेक्ट्रान वाले) अर्द्धचालकों का निर्माण होता है। सोलर सेल क्या है?

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Solar Panel कैसे काम करता है? (सोलर पैनल की कार्यप्रणाली)

जब इन अर्द्धचालकों को आपस में जोड़ा जाता है तो फ़ोटो-वोल्टाइक जंक्शन बनते हैं। जिसमें एक पॉजिटिव एवं एक नेगेटिव लेयर बनती है। दोनों लेयर के बीच एक एक फोटोवोल्टिक जंक्शन बनाया जाता है। जिसके परिमाण में यह सोलर सेल का निर्माण होता है। जब सूर्य का प्रकाश इन पर पड़ता है तो उस प्रकाश से प्रकार होने वाले फ़ोटॉन को यह अवशोषित कर लेते हैं, जिस से अर्द्धचालक सामग्री के भीतर इलेक्ट्रान मुक्त हो जाते हैं। ये मुक्त इलेक्ट्रान ही विद्युत प्रवाह उत्पन्न करते हैं, जिनके द्वारा ही बिजली उत्पन्न होती है।

सोलर पैनल अनेक सोलर सेल (फ़ोटोवोल्टिक सेल) की सहायता से बनते हैं, जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं। सिलिकॉन द्वारा निर्मित ये सोलर सेल सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में विद्युत वोल्टेज उत्पन्न करती है। एवं ऐसे में मुक्त हो कर बहने वाले इलेक्ट्रान, सोलर सेल के अंदर विद्युत क्षेत्र का निर्माण करते हैं। एवं इलेक्ट्रान के इस प्रवाह को ही विद्युत धारा (Electric Current) कहते हैं। इस करंट की मात्रा प्रत्येक सोलर सेल द्वारा उत्पन्न बिजली को निर्धारित करती है। सोलर पैनल कैसे काम करता है? (सोलर पैनल की कार्यप्रणाली)

सोलर सेल के द्वारा निर्मित यह धारा दिष्ट धारा (DC) के रूप में निर्मित होती है, सोलर पैनल में बनने वाली इस धारा को बैटरियों में स्टोर किया जा सकता है। घरों में प्रयोग होने वाले अधिकांश उपकरण प्रत्यावर्ती धारा (AC) से ही संचालित होते हैं, इसलिए सोलर पैनल से बनाई जाने वाली विद्युत धारा को इंवर्टर के माध्यम से DC से AC में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रकार सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को विद्युत रूप में परिवर्तित कर कार्य किया जाता है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त आर्टिकल के माध्यम से आप सोलर पैनल की कार्यप्रणाली की जानकारी समझ सकते हैं। सोलर पैनल में मुख्य कार्य सोलर सेल करते हैं, सोलर पैनल को सुरक्षा की दृष्टि से विभिन्न परतों में निर्मित किया जाता है। सोलर पैनल मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं। जो दक्षताओं के आधार पर अलग-अलग होते हैं। ये पॉलीक्रिस्टलाइन, मोनोक्रिस्टलाइन एवं बाइफेशियल प्रकार के होते हैं। उपभोक्ता अपनी आवश्यकता के अनुसार ही इनका प्रयोग कर सकते हैं। सभी सोलर उपकरणों की कार्य-प्रणाली एक समान होती है। कुछ में सिलिकॉन के स्थान पर अन्य अर्द्धचालकों का प्रयोग किया जाता है।

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