नेट-मीटरिंग क्या है? Net-Metering की आवश्यकता, उपयोग, कार्य प्रणाली जाने और इसके क्या फायदे है ?

नेट मीटरिंग एक बिजली बिलिंग सिस्टम है जो सौर ऊर्जा स्रोतों से जनरेट अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में भेजता है। इस प्रकार, ग्रिड से खरीदी गई बिजली के लिए क्रेडिट प्राप्त कर सकते हैं जो उनके अतिरिक्त उत्पन्न किए गए बिजली पर रिबेट मिलती है।

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नेट-मीटरिंग क्या है?
नेट-मीटरिंग

सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे अन्य ऐसे स्रोतों से जो पर्यावरण के अनुकूल हैं उनके द्वारा बिजली उत्पन्न करने के लिए नागरिकों द्वारा अपनी छत पर या अन्य स्थान पर पैनल प्रोजेक्ट लगाए जाते हैं। इसके उपयोग से जहाँ एक ओर उनके द्वारा पर्यावरण का संरक्षण होता है तो वहीं दूसरी ओर वे ग्रिड की बिजली का कम प्रयोग का बिल में लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए ही नेट-मीटरिंग की जाती है।

यदि आप सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सोलर पैनल स्थापित करना चाहते हैं आपके लिए नेट-मीटरिंग की जानकारी प्राप्त करना बहुत आवश्यक है। इसे स्थापित करने के लिए बिजली विभाग में आवेदन कर दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया करनी होती है।

Net-Metering क्या है?

यह एक बिलिंग व्यवस्था है जिसके द्वारा सौर ऊर्जा से निर्मित बिजली का प्रयोग करने वाले यूजर्स अतिरिक्त उत्पादित बिजली को ग्रिड को वापस कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में नेट-मीटरिंग एक ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा विद्युत का आयात-निर्यात किया जाता है एवं यह उस आयात-निर्यात हुई विद्युत की रीडिंग को जाँचता है। यह ऑन-ग्रिड प्रणाली के अंतर्गत ही कार्य करता है।

ऑन-ग्रिड प्रणाली में सोलर पैनल से जो फोटॉन दिष्टधारा DC के रूप में विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किये जाते हैं उन्हें आगे DC से AC प्रत्यावर्ती धारा में बदलने के लिए सोलर इन्वर्टर का प्रयोग किया जाता है। ऐसे में विद्युत के घरेलू या व्यवसायी उपयोग के लिए जितनी बिजली की आवश्यकता होती है उतने का प्रयोग कर बाकी ग्रिड को वापस भेज दिया जाता है। बीच में नेट-मीटर लगा होता है जो आयात-निर्यात होने वाली विद्युत की गणना करता है।

इसका उद्देश्य ऐसे नागरिकों को लाभ प्रदान करना है जिनके द्वारा सोलर पैनल के माध्यम से बिजली का उत्पादन हो रहा है। ऐसे नागरिक सिर्फ ग्रिड से प्रयोग की गयी बिजली के बिल का ही भुगतान करते हैं। भारत में सौर ऊर्जा से उत्पादित अधिकतम 10 किलोवाट बिजली पर ही नेट-मीटर लगाया जाता है। इस से ऊपर के उत्पादन के लिए ग्रॉस-मीटर का उपयोग किया जाता है।

नेट-मीटरिंग की आवश्यकताएं

इस की आवश्यकता इसलिए सर्वाधिक होती हैं क्योंकि कई बार आवश्यकता से अधिक बिजली उत्पादन के पैनल नागरिकों द्वारा स्थापित कर दिए जाते हैं। एवं ग्रिड लाइन की बिजली का वे बहुत कम प्रयोग करते हैं तो ऐसे में वे उत्पादित बिजली का कुछ अंश ग्रिड को ट्रांसफर कर सकते हैं जिसके लिए नेट-मीटर द्वारा यूनिट की गणना की जाती है।

इस की सहायता से आसानी से यह पता चल जाता है कि आपके द्वारा ग्रिड की कितनी बिजली का प्रयोग किया गया है एवं आपने ग्रिड को कितनी बिजली ट्रांसफर की है। उसके अनुसार आपको बिजली के शुद्ध बिल का भुगतान करना होता है एवं अधिक बिजली भेजने पर आपको लाभ प्रदान किया जाता है।

Net-Metering के उपयोग

आवासीय एवं व्यवसायिक/वाणिज्यिक स्तर में सोलर पैनल सिस्टम से जुड़े हुए नागरिक Net-Metering का उपयोग करते हैं। इस का उपयोग विद्युत की उस लागत को ऑफसेट करने में किया जाता है जो यूजर द्वारा ग्रिड से प्रयोग की गयी होती है। एवं जब उनके द्वारा प्रयोग की गयी बिजली की मात्रा सौर पैनलों से उत्पादित की गयी बिजली की मात्रा से अधिक हो जाती है।

इस के उपयोग से ग्रिड की बिजली एवं सौर पैनलों से उत्पन्न की गयी बिजली के अंतर को नोट किया जाता है ऐसे में सौर ऊर्जा का एक लाभ ये भी प्राप्त होता है की यह बिजली के भारी बिल में आपको कमी प्रदान करता है। इस के उपयोग से सौर ऊर्जा की विद्युत के यूजर को शुद्ध बिजली के बिल का ही भुगतान करना होता है। वह नेट-मीटर का प्रयोग कर एक प्रकार से बिजली का उत्पादक हो जाता है एवं उसे ग्रिड को बेचता है।

नेट-मीटरिंग की कार्य प्रणाली

सौर प्रणाली का प्रयोग करने वाले यूजर मीटरिंग के कार्य करने की प्रक्रिया को इस प्रकार आसानी से समझ सकते हैं। नेट-मीटरिंग की कार्य-प्रणाली चरणबद्ध प्रक्रिया है:

  • अधिकांशतः दिन के समय सौर पैनल आवश्यकता से अधिक विद्युत का उत्पादन करते हैं सौर पैनलों के द्वारा फोटॉन एनर्जी को विद्युत ऊर्जा के DC रूप में परिवर्तित किया जाता है।
  • सौर पैनलों से परिवर्तित हुई DC को AC में बदलने के लिए इन्वर्टर की आवश्यकता होती है। DC को बैटरी में सुरक्षित किया जाता है एवं AC ऑन-ग्रिड प्रणाली में कार्य करती है।
  • आवश्यकतानुसार घर के द्वारा कितनी बिजली का उपयोग किया जाता है। इसमें सौर पैनलों की बिजली और ग्रिड की बिजली दोनों का ही प्रयोग होता है। नेट-मीटरिंग की कार्य प्रणाली
  • नेट-मीटर द्वारा घर में या वाणिज्यिक क्षेत्र में प्रयोग की गयी बिजली की यूनिट का डाटा प्राप्त किया जाता है। यह सोलर पैनलों एवं ग्रिड की उपयोग बिजली का अंतर प्रदर्शित करता है। जिस से शुद्ध बिजली का मान प्राप्त होता है।
  • दिन के समय अधिक बिजली उत्पादन होने से हम घर में जनरेट की गयी बिजली को इन्वेर्टर की सहायता से AC में बदलकर इलेक्ट्रिक पावर ग्रिड में प्रदान कर सकते हैं।
  • मीटरिंग बिजली पावर सप्लाई कंपनी DISCOM द्वारा की जाती है वे आदान-प्रदान की गयी बिजली की यूनिट को मापते हैं एवं बिजली के उत्पादक को शुद्ध बिजली का बिल प्रदान करते हैं।

Net-Metering की विशेषता

इस की विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • यह सौर प्रणाली से बिजली उत्पादन करने के लिए यूजर को लाभ प्रदान करती है। अधिक बिजली उत्पादन से अतिरिक्त लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है।
  • नेट-मीटरिंग से ग्रिड एवं सोलर पैनल से प्राप्त होने वाली बिजली के आयात-निर्यात के अंतर की सटीक जानकारी प्राप्त हो सकती है।
  • नेट मीटर होने पर सौर विद्युत उत्पादक किसी भी समय ग्रिड और सोलर दोनों से प्राप्त बिजली का प्रयोग कर सकता है। वह रात के समय सोलर बिजली का उत्पादन ना होने पर ग्रिड की बिजली का उपयोग करता है।
  • सोलर पैनल से प्राप्त होने वाली बिजली को बढ़ाने के लिए एवं उसकी क्षमता की जांच करने के लिए नेट-मीटरिंग आवश्यक है।
  • यह उन सभी प्रोजेक्ट पर कार्य करती है जो पर्यावरण के अनुकूल विद्युत का उत्पादन करती है। जिस से भविष्य के लिए शुद्ध सौर बिजली का विकास अधिक होगा। सोलर पैनलों की बहुतायत होने पर नेट-मीटरिंग करने से सिर्फ अपने ही नहीं किसी और के योग्य भी बिजली का उत्पादन हो पायेगा।

Net-Metering के लाभ/फायदे

  • इस के होने से सौर विद्युत उत्पादक ग्रिड वाली बिजली के भारी बिल से राहत प्राप्त करता है। चूँकि इसमें शुद्ध बिजली का ही बिल आता है तो नागरिक इस से बिल में लाभ प्राप्त करता है।
  • सोलर पैनलों से निर्मित बिजली को ग्रिड को प्रदान करने से अन्य उपभोक्ताओं को भी बिजली प्राप्त होती है।
  • नेट-मीटर का प्रयोग करने वाले उपभोक्ता किसी भी समय बिजली का लाभ प्राप्त कर सकते हैं चाहे सौर पैनलों से बिजली जनरेट हो नहीं हो या नहीं। वे ग्रिड की बिजली का प्रयोग कर सकते हैं।
  • सौर पैनलों द्वारा आवश्यकता से अधिक बिजली होने पर उसे ग्रिड को प्रदान करने पर उपभोक्ताओं को कहीं उसकी कीमत प्रदान की जाती है तो कहीं उन्हें अगले महीने के बिजली बिल में छूट प्रदान होती है।
  • सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए जिस प्रकार पैनल कोई आवाज उत्पन्न ना कर प्रदूषण नहीं करते हैं ऐसे ही नेट-मीटर ऐसे सभी आवासों में या वाणिज्यिक क्षेत्रों में लगाया जाता है।

भारत में नेट-मीटरिंग स्थापित करने की प्रक्रिया

वे सभी नागरिक जो आवासीय या वाणिज्यिक स्तर पर सोलर पैनल लगा कर विद्युत जनरेट करना चाहते हैं उन्हें नेट-मीटिंग आवश्यक रूप से करनी चाहिए। भारत में नेट-मीटरिंग 10 किलोवाट क्षमता के विद्युत उत्पादन से नीचे के ही कर सकते हैं। नेट-मीटरिंग करने के लिए देश के प्रत्येक राज्य में अलग-अलग नियम हैं। यदि आप नेट-मीटर स्थापित करना चाहते हैं तो इस प्रकार आवेदन करें:

  1. सोलर पैनल के आवेदन के लिए अपने ब्लॉक या विद्युत डिवीजन कार्यालय में उपलब्ध कर्मचारी से आवेदन फॉर्म प्राप्त करना होता है।
  2. आवेदन को भरने के बाद उपमंडल अधिकारी एसडीओ के पास उसे जमा कर देना चाहिए।
  3. इसके बाद जूनियर इंजीनियर या एसडीओ द्वारा आपके सोलर पैनल की साइट का निरीक्षण किया जायेगा एवं साइट सही होने पर इसकी आगे पुष्टि की जाएगी।
  4. सोलर प्रणाली को स्थापित करने के बाद आपको सम्पत्ति सम्बंधित दस्तावेज, सौर प्रणाली प्रमाणपत्र, प्लांट का इंस्टालेशन सर्टिफिकेट एवं नेट-मीटर का शुल्क जमा करना होता है।
  5. इसके बाद एसडीओ/जेई द्वारा पुनः सत्यापन हो जाने पर आप के द्वारा सोलर प्लांट लगाया जा सकता है एवं नेट-मीटरिंग विभाग द्वारा की जा सकती है।

नेट-मीटरिंग स्थापना की भारत में लागत

यह भारत में मुख्यतः दो प्रकार से ही होती है। सिंगल फेज एवं ट्रिपल फेज। सिंगल फेज एवं ट्रिपल फेज

नेट-मीटर का प्रकार शुल्क (रूपये)
सिंगल फेज नेट मीटर 2500-3000
ट्रिपल फेज नेट मीटर 5000-10,000

Net-Metering से सम्बंधित प्रश्न एवं उत्तर

नेट-मीटरिंग क्या है?

नेट-मीटरिंग एक बिलिंग व्यवस्था है जिसके द्वारा सौर ऊर्जा से निर्मित बिजली का प्रयोग करने वाले यूजर्स अतिरिक्त उत्पादित बिजली को ग्रिड को वापस कर सकते हैं।

भारत में कितने प्रकार के नेट-मीटर उपलब्ध है?

भारत में मुख्यतः दो प्रकार के नेट मीटर सिंगल फेज एवं ट्रिपल फेज नेट मीटर उपलब्ध हैं।

नेट-मीटरिंग के क्या लाभ है?

नेट-मीटरिंग से ग्रिड की उपयोग की गयी शुद्ध बिजली का ही बिल आता है। इस से बिल में कमी आती है।

भारत में नेट-मीटरिंग की सीमा कितने किलोवाट तक है?

भारत में नेट-मीटरिंग की सीमा 10 किलोवाट तक है इस से अधिक बिजली उत्पादन होने पर ग्रॉस-मीटरिंग करनी होती है।

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