IIT कानपुर ने तैयार की पड़ोसी देश से 10 गुणा सस्ती सोलर पैनल तकनीक, सस्ते सोलर पैनल बनाने में चीन को टक्कर देगा भारत

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सोलर पैनल आज के समय में पूरी दुनियाँ में प्रयोग किए जा रहे हैं, इनके माध्यम से इलेक्ट्रिक ग्रिड की निर्भरता को कम किया जा सकता है। सोलर पैनल का निर्माण भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है। जिस से अन्य देशों पर सोलर पैनल के लिए आश्रित रहने की आवश्यकता समाप्त की जा सकती है। अब तक भारत में अधिकांश सोलर पैनल विदेशी देशों में निर्मित ही प्रयोग किए जाते हैं, जिसका कारण विदेशी सोलर पैनलों की कीमत का कम होना है। लेकिन अब IIT कानपुर द्वारा सोलर पैनल की ऐसी तकनीक का निर्माण किया जा रहा है, जो पड़ोसी देश से 10 गुणा सस्ते दाम पर सोलर पैनल उपभोक्ताओं को प्रदान कर सकती है।

IIT कानपुर ने तैयार की पड़ोसी देश से 10 गुणा सस्ती सोलर पैनल तकनीक, सस्ते सोलर पैनल बनाने में चीन को टक्कर देगा भारत
IIT कानपुर ने तैयार की पड़ोसी देश से 10 गुणा सस्ती सोलर पैनल

सोलर पैनल को विकसित कर कम कीमत पर प्राप्त करने से नागरिक भारत में निर्मित सोलर पैनल का प्रयोग अधिक से अधिक करेंगे। इस से देश की नवीकरणीय क्षमता के साथ ही आय में भी वृद्धि होगी। नई तकनीक के सोलर सिस्टम को बहुत कम कीमतों में निर्मित करने के लिए आईआईटी कानपुर प्रयासरत है। उनके अनुसार यह पेरोव्स्काइट सेल की टेक्नोलॉजी को विकसित किया गया है। इस प्रकार भारत के सोलर पैनल ग्लोबली उपलब्धि प्राप्त करेंगे। जिससे इस तकनीक से सिलिकॉन सेल उत्पादन में चीन के साथ भारत प्रतिस्पर्धा कर सकता है। एवं भविष्य में भारत विश्व में सोलर पैनल का प्रमुख उत्पादक देश बन सकता है।

IIT कानपुर ने तैयार की पड़ोसी देश से 10 गुणा सस्ती सोलर पैनल तकनीक

आईआईटी कानपुर के सतत ऊर्जा विभाग के प्रोफेसर केएस नलवा द्वारा इस रिसर्च की जानकारी दी गई है। इस रिसर्च में उनके द्वारा पेरोव्स्काइट सेल के प्रयोग से बिजली उत्पादन के लिए पैनल तैयार किया गया है। विश्व में इस प्रकार के सेल सबसे पहले 2009 में तैयार किए गए थे। इस प्रकार के सोलर सेल विकसित है, इनका प्रयोग कर अधिक तेजी से सौर ऊर्जा उत्पादन किया जा सकता है, लेकिन इस प्रकार के पेरोव्स्काइट सेल की लाइफ साइकिल बहुत कम मात्र 6 महीने ही होती है। इस प्रकार के सेल गर्मी एवं आर्द्रता को सहन नहीं करते हैं एवं खराब हो जाते हैं।

आईआईटी कानपुर द्वारा इस पेरोव्स्काइट सेल की इसी कमी में सुधार किया गया है। इस सेल को विकसित करने के लिए इसमें अन्य पदार्थों का मिश्रण प्रयोग किया गया है, जिससे पेरोव्स्काइट सेल में बारिश या ओंस से पहुँचने वाली नमी के प्रवेश को रोक दिया जाएगा। इस सोलर पैनल में रहने वली कमियों को दूर करने के लिए इन पर कार्बन की एक लेयर बिछाई जाएगी। ऐसा करने से इन सेलों पर पराबैंगनी किरणों को पहुँचने से रोक दिया जाएगा। और अतिरिक्त गर्मी से इस सेल की सुरक्षा की जाएगी। पारंपरिक सोलर पैनलों में प्रयुक्त होने वाले सेल सिलिकॉन के बने होते हैं।

पेरोव्स्काइट सेल की नई तकनीक से लाभ

पेरोव्स्काइट सेल की नई तकनीक में IIT कानपुर द्वारा निम्न सुधार किए गए हैं:-

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  • पेरोव्स्काइट सेल की लाइफ-साइकिल को 6 महीने से बढ़ाकर 2 साल तक कर दिया गया है। अभी इस सेल की लाइफ-साइकिल को 5 वर्ष तक बढ़ाने के लिए निरंतर शोध किए जा रहे हैं। जिसके जल्द ही पॉजिटिव परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
  • नमी एवं आर्द्रता से पहले ये सोलर सेल जल्दी खराब हो जाते थे, अब नई तकनीक से बनाए गए इन सेलों की इस कमी को समाप्त किया गया है। दोनों ही प्रकार की परिस्थितियों पर शोधकर्ताओं द्वारा नियंत्रण प्राप्त कर लिया गया है। 5 साल तक लाइफ साइकिल बन जाने के बाद 10 साल तक की लाइफ-साइकिल वाले सोलर सेल पर कार्य किया जाएगा।
  • पेरोव्स्काइट सेल की कीमत पारंपरिक सिलिकॉन सेल की कीमत के 10% तक हो सकती है। इस सेल की कीमत बहुत कम होगी। ऐसा होने पर अधिक से अधिक प्रोजेक्ट में इनसे निर्मित सोलर पैनलों का प्रयोग किया जाएगा। मेड इन इंडिया सोलर प्रोडक्ट से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
  • पेरोव्स्काइट सेल की दक्षता को बढ़ाया जा रहा है, इस सेल के माध्यम से भी सिलिकॉन सेल के समान ही बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा। रिसर्च में बताया गया है कि इस सेलों के द्वारा भी सिलिकॉन सेल के समान 26% ऊर्जा का उत्पादन प्राप्त किया जाएगा।

सौर ऊर्जा उत्पादन लक्ष्य होगा आसान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में सोलर सिस्टम से संबंधित सूर्योदय योजना और सूर्य घर मुफ़्त बिजली योजना को लांच किया गया है। इन योजनाओं के माध्यम से 1 करोड़ परिवारों में सोलर पैनल स्थापित किए जाएंगे। साथ ही ऐसे परिवारों को 300 यूनिट फ्री बिजली भी प्रदान की जाएगी। इस प्रकार की योजनाओं के माध्यम से सोलर पैनल लगाने के लिए नागरिकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऐसा होने पर देश की नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता में वृद्धि हो सकती है।

योजनाओं का लाभ प्राप्त कर के नागरिक 3 किलोवाट क्षमता के सोलर सिस्टम को 90 हजार से 1 लाख रुपये के खर्चे में स्थापित कर सकता है। यदि बिना सब्सिडी के यह सिस्टम स्थापित किया जाए तो इसमें 2 लाख रुपये तक का खर्चा हो सकता है। जब पेरोव्स्काइट सेल से बने सोलर पैनल का प्रयोग सोलर सिस्टम में किया जाएगा तो स्वतः ही सोलर सिस्टम को लगाने का कुल खर्चा और कम हो जाएगा। ग्लोबल सोलर एनर्जी सिस्टम के अनुसार सोलर उपकरण विनिर्माताओं को इसका लाभ प्राप्त होगा। एक मेगावाट के सिलिकान सेल संयंत्र में सोलर पैनल की कीमत लगभग दो करोड़ रुपये होती है, पेरोव्स्काइट सेल सोलर पैनल से यह कीमत सिर्फ 20 लाख रुपये हो सकती है।

निष्कर्ष

पेरोव्स्काइट सेल से बने सोलर पैनल को विकसित करने के बाद भारत में यहीं निर्मित होने वाले सोलर पैनल का प्रयोग किया जाएगा। सोलर पैनल के लिए चीन पर आश्रित रहने की आवश्यकता भारत को नहीं रह जाएगी। ऐसा होने से आर्थिक रूप से भी सोलर विनिर्माताओं को लाभ प्राप्त होगा, और सोलर सिस्टम स्थापित करने वाले नागरिकों को भी लाभ प्राप्त होगा। सोलर सिस्टम में सबसे महत्वपूर्ण उपकरण सोलर पैनल होते हैं। सोलर सिस्टम को स्थापित कर पर्यावरण में मौजूद कार्बन फुटप्रिन्ट को कम कर के हरित भविष्य की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। क्योंकि सोलर पैनल के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल ही बिजली का उत्पादन किया जाता है।

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