सौर ऊर्जा आज की दुनिया के लिए एक अनिवार्य संसाधन बन चुकी है क्योंकि हमारी अधिकांश बिजली अभी भी जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होती है, जिससे वातावरण में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन का संकट गहराता जा रहा है।

सूरज, जो कि एक तीव्र आग का गोला है और जिसकी सतह का तापमान लगभग 5500 डिग्री सेल्सियस है, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का आधार है। पृथ्वी का सबसे नजदीकी तारा होने के नाते, इसकी ऊर्जा न केवल हमारे दिन-रात को नियंत्रित करती है,

बल्कि यह पौधों को बढ़ने और जीवन को खाना तथा ऑक्सीजन प्रदान करती है। बिना सूरज के, हमारी पृथ्वी जम जाएगी, न हवाएं होंगी, न समुद्री जलधाराएं, न ही बादल।

सौर पैनलों के उपयोग से सूरज की ऊर्जा को स्वच्छ और कुशल बिजली में बदला जा रहा है। 1954 में, अमेरिका की बेल लेबोरेटरीज ने पहली व्यावसायिक सौर सेल विकसित की, और तब से इस क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ है। 

आज, चीन, अमेरिका, जापान, जर्मनी, और भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी देश हैं। हालांकि, सौर ऊर्जा के विस्तार की राह में चुनौतियाँ अब भी हैं, जैसे कि बादलों या रात्रि के समय इसकी प्रभावशीलता में कमी।

सोलर पैनल जिन्हें सोलर मॉड्यूल भी कहा जाता है यह आपस में जुड़ी बहुत सारी सोलर सेल से बने होते हैं फिलहाल 95 फीसद सोलर सेल सिलिकॉन से बनी होती हैं जो हमें रेत से मिलती हैं क्वाट से इसे पिघलाया  जाता है और जटिल प्रक्रिया के जरिए साफ किया जाता है 

इससे मिले सिलिकॉन को बेहद पतली परतों में काटा जाता है जिन्हें वेफर कहा जाता है सेल में विद्युत संचालन क्षमता को लाने के लिए सिलिकॉन पर कुछ अशुद्धियां लगाई जाती हैं

बैटरी की तरह सोलर सेल में भी पॉजिटिव और नेगेटिव पोल होते हैं जब सेल पर धूप पड़ती है तो इलेक्ट्रॉन सिलिकॉन बोरनन परत में पहुंचते हैं क्योंकि उनका चार्ज नेगेटिव होता है तो वह पॉजिटिव पोल की तरफ खींचते हैं 

सोलर सेल में ऊपर और नीचे धातु के संचालक भी होते हैं मुक्त इलेक्ट्रॉन इन संचालकों के रास्ते पर चलते हैं जिससे जब तक सूरज चमकता है बिजली पैदा होती रहती है 

जब सतह पर ज्यादा धूप पड़ती है तो ज्यादा बिजली पैदा होती है उत्पादन बढ़ाने के लिएसोलर मॉड्यूस को अक्सर एक सीरीज में जोड़ा जाता है और उन्हें जोड़कर बड़े सिस्टम बनाए जाते हैं